ब्याज दरों में कमी की वजह समझें

By स्टॉफ | April 28, 2015 | Last updated on April 28, 2015
1 min read

तो, ब्याज दरें कम क्यों हैं? अनेक लोग सरकार पर दरें कम रखने का दोष मढ़ रहे हैं, ऐसा बेन बर्नानके का कहना है जो ब्रूकिंग्स इंस्टीट्‌यूशन में इकोनॉमिक स्टडीज प्रोग्राम में प्रतिष्ठित आवासीय फेलो हैं।

लेकिन फेडरल रिजर्व के पूर्व अध्यक्ष के मुताबिक, यह अर्थव्यवस्था पर आधारित है। वास्तव में, वह दरों का आधार है। उनका कहना है कि ‘इससे यह समझने में मदद मिलती है कि केवल अमेरिका (और कैनेडा) में ही नहीं बल्कि पूरे औद्योगीकृत विश्व में वास्तविक ब्याज दरें कम क्यों हैं।’

बर्नानके आज के कम दर वाले माहौल के तीन आर्थिक कारण गिनाते हैं। आइए इन्हें देखें।

1. सेकुलर ठहराव

अर्थशास्त्री एल्विन हानसेन ने 1938 में सेकुलर ठहराव शब्द गढ़ा था। इसके अनुसार, निवेशों पर उदासीन खर्च, तथा घरेलू उपभोग में घटोत्तरी का वर्षों तक पूर्ण रोजगार में रूकावट बनना संभावित है।

परिचित प्रतीत होता है? इसे होना चाहिए, क्योंकि हम इस समय सेकुलर ठहराव के दौर में हैं, हां अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है और लोगों को नौकरियां खोजने में दिक्कतें आ रही हैं।

तो, अर्थव्यवस्था को प्रेरित करने के लिए फेडरल रिजर्व और बैंक ऑफ कैनेडा ने ब्याज दरें कम रखी हैं। उनको उम्मीद है कि उपभोक्ता और कारोबारी पैसा उधार लेंगे यदि कर्ज पर ब्याज दर, उदाहरण के लिए, कम हों। तब वे निवेश करने, माल खरीदने या ज्यादा लोगों को नियुक्त करने के लिए उन धनराशियों का उपयोग करेंगे।

2. वैश्विक बचत की अधिकता

इस सिद्धांत के मुताबिक पूरी दुनिया में अपेक्षित निवेशों की तुलना में अपेक्षित बचतों की अधिकता है। बर्नानके का कहना है कि यह अधिकता मुख्य रूप से ‘चीन तथा अन्य एशियाई उभरते बाज़ारों वाली अर्थव्यवस्थाओं तथा तेल उत्पादकों जैसे कि सऊदी अरब’ में बचतों की वजह से है।

अभी, चीन और सऊदी अरब जैसे देश आयात से अधिक निर्यात कर रहे हैं, जबकि अमेरिका, निर्यात से अधिक आयात कर रहा है। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच असंतुलन है, और अभी, दुनिया भर में आयात से निर्यात करने वाले ज्यादा हैं।

तो क्या होना चाहिए?

वैश्विक केंद्रीय बैंक अधिक संतुलन चाहते हैं। ऐसा करने के लिए, वे देशों को उनकी अतिरिक्त बचतें खर्च करने हेतु प्रेरित करने के लिए ब्याज दरें कम रख रहे हैं।

यह अच्छी खबर है कि चीन ने अपने निर्यात और अपनी अर्थव्यवस्था में निवेश घटाने शुरू कर दिए हैं। और तेल की कीमतों में कमी से सऊदी अरब द्वारा निर्यात की डॉलर मात्रा कम हो रही है। अतः बर्नानके का कहना है कि वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं जल्दी ही कम बचत करेंगी, जिससे भविष्य में ब्याज दरें ऊंची हो जाएंगी।

3. टर्म प्रीमियम

दीर्घकालीन दरें कम बनी हुई हैं। बर्नानके बताते हैं कि दीर्घकालीन दरों का व्यवहार समझने के लिए, बांड का प्रतिफल बनाने वाले घटक देखना होगाः प्रत्याशित मुद्रास्फीति, वास्तविक अल्पकालीन ब्याज दरों के भावी पथ के बारे में प्रत्याशाएं, और एक टर्म प्रीमियम।

अंतिम घटक ‘वह अतिरिक्त प्रतिफल है जो ऋणदाता द्वारा अल्पकालीन प्रतिभूतियों की श्रृंखला में निवेश करने के बजाय अधिक लम्बी अवधि के बांड को होल्ड करने के एवज में मांगा जाता है।’ बर्नानके उल्लेख करते हैं।

मुद्रास्फीति (महंगाई) और अल्पकालीन दरें, कम रहने की उम्मीद है, वे कहते हैं। इस दौरान, टर्म प्रीमियम के निचले स्तर, जो हाल के समय में शून्य या कुछ ऋणात्मक भी रहे हैं, भी इस बात का संकेत हैं कि ब्याज दरें जल्दी बढ़ने वाली नहीं हैं।

स्टॉफ